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Anand Bakshi - Jagat Musafir Khana Lyrics

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Anand Bakshi - Jagat Musafir Khana Lyrics
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जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना
ओ ओ ओ ओ ओ जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाए शाम
चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाए शाम
रुत आए रुत जाए मौसम
आने जाने के है नाम
हो जोगी, किसका कौन ठिकाना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
सबकी अपनी अपनी मंज़िल
अपना अपना रस्ता
ओ जोगी, जीवन पथ अंजाना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

चार दिनों का मेल रे भैया
जिसने सारे खेल रचाए
चार दिनों का मेल रे भैया
जिसने सारे खेल रचाए
माँ बच्चों से मिलने आए
फिर वापस घर जाए
ओ जोगी, ये दसतूर पुराना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना
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जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना
ओ ओ ओ ओ ओ जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाए शाम
चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाए शाम
रुत आए रुत जाए मौसम
आने जाने के है नाम
हो जोगी, किसका कौन ठिकाना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
सबकी अपनी अपनी मंज़िल
अपना अपना रस्ता
ओ जोगी, जीवन पथ अंजाना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना

चार दिनों का मेल रे भैया
जिसने सारे खेल रचाए
चार दिनों का मेल रे भैया
जिसने सारे खेल रचाए
माँ बच्चों से मिलने आए
फिर वापस घर जाए
ओ जोगी, ये दसतूर पुराना लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िर खाना, लगा है आना जाना
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Writer: ANAND BAKSHI, RAHUL DEV BURMAN
Copyright: Lyrics © Royalty Network
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