वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
भर दे नीयत मुझे तू इतनी पीला दे साक़ि
भर दे नीयत मुझे तू इतनी पीला दे साक़ि
ना कमी आएगी कोई तेरे खजाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
देख कर मस्त निगाहों को नतीजा निकला
देख कर मस्त निगाहों को नतीजा निकला
छोड़िए रखा हैं क्या जाम के टकराने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
बाद पीने के जो मदहोश हुआ तो जाना
बाद पीने के जो मदहोश हुआ तो जाना
उसने जाका था बड़े प्यार से पैमाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
उनकी नज़रों से मिली नज़र तो महसूस किया
उनकी नज़रों से मिली नज़र तो महसूस किया
उम्र ज़ा जा के गवाई यूँही मैखाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
वक़्त क्यों ज़ाया करूँ रोज़ आने जाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में
सोचता हूँ के मैं रह लू शराब खाने में