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Jagjit Singh - Kya Khoya Kya Paya Lyrics

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Jagjit Singh - Kya Khoya Kya Paya Lyrics
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ज़िंदगी की शोर, राजनीति की आपाधापी, रिश्ते नातो की गलियों
और क्या खोया क्या पाया के बाज़ारो से आगे
सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहाँ पहुँच
कर इंसान एकाकी हो जाता है तब, जाग उठता है एक कवि
फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरे बनती है
कविताए और गीत, सपनो की तरह आते है
और काग़ज़ पर हमेशा के लिए अपना घर बना लेते हैं
अटल जी की ये कविताएँ, ऐसे ही पल, ऐसे ही छाना मे
लिखी गयी है, जब सुनने वाले और सुनाने वाले मे
तुम और मई की दीवारे टूट जाती है, दुनिया की सारी
धड़कने सिमट कर एक दिल मे आ जाती है, और कवि के
शब्द दुनिया के हर संवेदन शील इंसान के शब्द बन जाते है

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नही शिकायत
यधयापि चला गया पग पह मैं
एक दृस्टि बीती पर डाले
यादो की पोटली टटोले
एक दृस्टि बीती पर डाले
यादो की पोटली टटोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मान से कुछ बोले

पृथ्वी लखो वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पृथ्वी लखो वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाये
यधयापि सो शर्डों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
खुद दरवाजा खोले
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
खुद दरवाजा खोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले

जनम मरण का अविर्त फेरा
जीवन बंजारो का डेरा
जनम मरण का अविर्त फेरा
जीवन बंजारो का डेरा
आज यह कल कहा कूच है
कौन जनता, किधर सवेरा
आँधियारा आकाश असेमित
प्राणो के पँखो को तोले
आँधियारा आकाश असेमित
प्राणो के पँखो को तोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
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ज़िंदगी की शोर, राजनीति की आपाधापी, रिश्ते नातो की गलियों
और क्या खोया क्या पाया के बाज़ारो से आगे
सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहाँ पहुँच
कर इंसान एकाकी हो जाता है तब, जाग उठता है एक कवि
फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरे बनती है
कविताए और गीत, सपनो की तरह आते है
और काग़ज़ पर हमेशा के लिए अपना घर बना लेते हैं
अटल जी की ये कविताएँ, ऐसे ही पल, ऐसे ही छाना मे
लिखी गयी है, जब सुनने वाले और सुनाने वाले मे
तुम और मई की दीवारे टूट जाती है, दुनिया की सारी
धड़कने सिमट कर एक दिल मे आ जाती है, और कवि के
शब्द दुनिया के हर संवेदन शील इंसान के शब्द बन जाते है

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नही शिकायत
यधयापि चला गया पग पह मैं
एक दृस्टि बीती पर डाले
यादो की पोटली टटोले
एक दृस्टि बीती पर डाले
यादो की पोटली टटोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मान से कुछ बोले

पृथ्वी लखो वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पृथ्वी लखो वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाये
यधयापि सो शर्डों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
खुद दरवाजा खोले
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
खुद दरवाजा खोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले

जनम मरण का अविर्त फेरा
जीवन बंजारो का डेरा
जनम मरण का अविर्त फेरा
जीवन बंजारो का डेरा
आज यह कल कहा कूच है
कौन जनता, किधर सवेरा
आँधियारा आकाश असेमित
प्राणो के पँखो को तोले
आँधियारा आकाश असेमित
प्राणो के पँखो को तोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
अपने ही मन से कुछ बोले
[ Correct these Lyrics ]
Writer: Atal Bihari Vijpayyee, Jagjit Singh
Copyright: Lyrics © Royalty Network
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