मन रे तू काहे ना धीर धरे
ओ निर्मोही मोह ना जाने
जिनका मोह करे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
इस जीवन की चढ़ती ढलती
धुप को किस ने बाँधा
रंग पे किसने पहरे डाले
रूप को किसने बाँधा
काहे यह जतन करे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
यह सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
ओ निर्मोही मोह ना जाने
जिनका मोह करे
हो मन रे तू काहे ना धीर धरे