रात के साए तले
साँस साँस है जले
थाम लो लबों की नर्मियाँ
फिर यह पल मिले ना मिले
रात के साए तले
साँस साँस है जले
वो वो
ओढ़के जिस्मों की चाँदनी बाहों में खोए रहे
आँखों को आँखों से पीके सोए रहे
जो भी दरमियाँ कर दे बयान
ज़िंदगी का क्या भरोसा
कब हो यह धुआँ रात के साए तले
साँस साँस है जले
हो
रोकते लम्हो के क़ाफ़िले सुबह को होने ना दे
बहके बहके पल है जो मिले सोने ना दे
आजा जाने जान हो जाई फ़ना
बात का क्या भरोसा कब बदले समा
रात के साए तले
साँस साँस है जले ह्म