अकेला
वो सड़क के किनारे खड़ा बेचता
झुके ना
इक लड़कपन उसे जो कभी ना मिला
घर मेरा कहाँ
बस यही कहे
पेट भर सकूँ
इ्सलिए कर रहा
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ
हम आज फिर चल पड़े है
देखे बिना कीन अँधेरों की ओर
दिन है वही है वही लोग
देखे ना मुड़कर कभी मेरी ओर
है बिखर रहा
बस नहीं कहे
एक बन सकूँ
इस लिये कर रहा
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ
खुशी ने है फिर भी उसे
कहीं से ढूंढ लिया
भले किस्मतों ने उसे
भरी राह छोड़ दिया
वो चले जहां रुके वहाँ
मसखरी करे
गिर संभल के भी
मस्तियों में कर रहा
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ कलाबाज़ियाँ
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ