गलियाँ आ आ आ
यहीं डूबे दिन मेरे आ आ आ
हो किसी शायर की गज़ल
यहीं डूबे दिन मेरे ए ए
तेरे इश्क़ में आ आ आ
पल, दो पल, की ही क्यूँ है ज़िंदगी
इस प्यार को है साड़ियाँ काफ़ी नही
है सिला तू मेरे दर्द का
मेरे दिल की दुआए हैं
तेरी गलियाँ गल्लियान तेरी, गल्लियान
मुझको भावे गलियाँ तेरी गलियाँ
तेरी गलियाँ गलियाँ तेरी गल्लियान
युही तड़पावे गल्लियान तेरी गल्लियान गल्लियान
गलियाँ गलियाँ आ आ आ
यहीं डूबे दिन मेरे मैं अधूरा
आ आ आ
मुस्काता यह चेहरा चेहरा
देता है जो पहरा
जाने छूपाता क्या दिल का समंदर
गलियाँ
औरों को तो हर दम साया देता है (हर दम)
वो धूप में है खड़ा खुद मगर
गलियाँ
तो खुदा से माँग लू मोहलत मैं इक नयी
रहना है बस यहाँ अब दूर तुझसे जाना नही
आ आ आ आ
तेरी बाहों में जो सकूँ था मिला
जैसे बन्जारे को घर
अंधेरो से था मेरा रिश्ता बड़ा
तूने ही उजालों से वाक़िफ़ किया
अब लौटा मैं हूँ इन्न अंधेरो में फिर
तो पाया है खुद को बेगाना यहाँ
लोटूँगा यहाँ तेरे पास मैं हाँ
वादा है मेरा मर भी जाउ कहीं
जो तू मेरा हमदर्द है आ आ
जो तू मेरा हमदर्द है आ आ
सुहाना हर दर्द है
जो तू मेरा हमदर्द है
गलियाँ आ आ आ आ
यहीं डूबे दिन मेरे आ आ आ