लिख गयी दास्तान सरगोशियाँ
एक ग़ज़ल कह गयी खामोशियाँ
यादों के पुर्ज़े कुछ छूटे थे राहों मे
एक हवा सुलगा गयी चिंगारियाँ
लिख गयीं दास्तान सरगोशियाँ
एक ग़ज़ल कह गयीं खामोशियाँ
यह ज़रूरी तो नहीं के हर लहर को साहिल मिले
कितने अरमान बनके शम्मा के है रोशन सिलसिले
हा नशा कुछ आराही है जले हुए चाहो मे
दर्द की है अज़ब मदहोशियाँ मदहोशियाँ
लिख गयीं दास्तान सरगोशियाँ
एक ग़ज़ल कह गयीं खामोशियाँ
ता उमर जर्रा भर कुछ करम लौटाने को
और कहीं लम्हे बस हस्तियाँ भूलाने को
तजर्बी यूँ सिमटी है अब चाँद ठंडी आहों मे
रंजिशें अब लगें
नादानियाँ नादानियाँ
लिख गयी दास्तान सरगोशियाँ
एक ग़ज़ल कह गयीं खामोशियाँ