रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
पंछी चला, उस देस को
है जहाँ, रातों में, सुबह घुली
पंछी चला, परदेस को
के जहाँ, वक्त की, गाँठ खुली
रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
हाँ नूर को, ऐसे चखा
मीठा कुआँ, ये मन हुआ
रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
हम्म म्म हम्म म्म
म्म हम्म हम्म म्म
हम्म म्म म्म हम्म
गेहरी नदी, मे डूब के
आखिरी साँस का, मोती मिला
सदियों से था, ठहरा हुआ
हाँ गुज़र ही गया, वो काफ़िला
पर्दा गिरा, मेला उठा
खाली कोई, बर्तन हुआ
माटी का ये, मैला घड़ा
फूटा तो फिर, कंचन हुआ
रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
रुआँ रुआँ, रौशन हुआ
धुआँ धुआँ, जो तन हुआ
हाँ नूर को, ऐसे चखा
मीठा कुआँ, ये मन हुआ