लहरा के डगर चली जाती हैं किघर
कुछ तुमको पता हैं
कुछ तुम्हें हैं खबर
दूर कहीं पे सोने की जर्मी पे
प्यारा प्यारा हैं बहारों का नगर
लहरा के डगर चली जाती हैं किघर
कुछ तुमको पता हैं
कुछ तुम्हें हैं खबर
आ आ आ आ ये खिले खिले मनचले
सजे मौसम की कसम
रुकते नहीं कहीं मेरे कदम
लगता हैं मन को जैसे गगन को
पंख बिना मैं छू रही हूँ उड़ कर
लहरा के डगर चली जाती हैं किघर
कुछ तुमको पता हैं
कुछ तुम्हें हैं खबर
जब धीरे धीरे नदिया के तीरे दिन जो ढले
मेहंदी रचा कर शाम चलें
रुके दबे पाँव से रंगों भरे गाँव से
आई हो रंगीली कोई गोरी सजकर
लहरा के डगर चली जाती हैं किघर
कुछ तुमको पता हैं कुछ तुम्हें हैं खबर
दूर कहीं पे सोने की जर्मीं पे
प्यारा प्यारा हैं बहारों का नगर
लहरा के डगर चली जाती हैं किघर
कुछ तुमको पता हैं कुछ तुमको पता हैं