सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
देखा सरहद के उस पार से
कुच्छ मेहमान आए हैं
आँखों से मायूस सारे
चेहरे सारे सुने सुनाए
पाँव धोए हाथ धुलाए
आँगन में आसन लगवाए
और तंदूर पे मक्की के
कुच्छ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मेरे
पिच्छाले सालों की फसलों का
ग़ूढ लाए थे
आँख खुली तो देखा
घर में कोई नही था
आँख लगाकर देखा तो
तंदूर अभी तक बुझा नही था
और होंटो पर मीठे ग़ूढ का
ज़ायक़ा अब्ब तक चिपक रहा था
खाब था शायद खाब ही होगा
सरहद पर कल रात सुना था
एक चली थी गोली
सरहद पर कल रात सुना है
कुच्छ खाबों का खून हुवा है
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
सुबह सुबह
सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
देखा सरहद के उस पार से
कुच्छ मेहमान आए हैं
आँखों से मायूस सारे
चेहरे सारे सुने सुनाए
सुबह सुबह, सुबह सुबह
पाँव धोए हाथ धुलाए
आँगन में आसन लगवाए
और तंदूर पे मक्की के
कुच्छ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मेरे
पिच्छाले सालों की फसलों का
ग़ूढ लाए थे
सुबह सुबह, सुबह सुबह
आँख खुली तो देखा
घर में कोई नही था
आँख लगाकर देखा तो
तंदूर अभी तक बुझा नही था
और होंटो पर मीठे ग़ूढ का
ज़ायक़ा अब्ब तक चिपक रहा था
खाब था शायद खाब ही होगा
सरहद पर कल रात सुना है
चली थी गोली
सरहद पर कल रात सुना है
कुच्छ खाबों का खून हुवा है
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह
सुबह सुबह