शायद शायद शायद शायद
मंज़िल मंज़िल मंज़िल मंज़िल
कल की इन बातों में क् या रखा है
सोचो तो कुछ भी नहीं सब खला है
आज भी कुछ बदला नहीं
कल जहाँ था अब भी हूँ वहीं
शायद यही किस्मत में है लिखा
मंज़िल नहीं फिर भी में चल रहा
इन सब सवालों में क्या रख्खा है
क्यूँ में कुछ सोचूँ जब सब फ़ना है
आज फिर उसी मोड़ पे हूँ खड़ा
किस गुनाह की सह रहा हूँ सजा
शायद यही किस्मत में है लिखा
मंज़िल नहीं फिर भी में चल रहा
शायद यही किस्मत में है लिखा
मंज़िल नहीं फिर भी में चल रहा
आ आ आ आ आ
आज भी उसी मोड़ पे हूँ खड़ा(खड़ा)
किस गुनाह की सह रहा हूँ सजा(किस गुनाह की सह रहा हूँ सजा)
शायद यही किस्मत में है लिखा
मंज़िल नहीं फिर भी में चल रहा