अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इंतज़ार
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार
उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन के आने की उम्मीद
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार
मेरी आहें नारसा मेरी दुआएँ ना-कुबूल
या इलाही क्या करूँ मैं शर्मसार-ए-इंतज़ार
उन के ख़त की आरज़ू है उन के आमद का ख़याल
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार