आ आ आ आ
हो हो हो हो हो हो
हो हो
हा हा
हुस्न पहाड़ों का ओह शाहिबा
हुस्न पहाड़ों का
क्या कहना की बारों महीने
यहाँ मौसम जाड़ों का
क्या कहना की बारों महीने
यहाँ मौसम जाड़ों का
रुत ये सुहानी है मेरी जान रुत ये सुहानी है
के शरदिसे डर कैसा संग गरम जवानी है
के शरदिसे डर कैसा संग गरम जवानी है
हो हो हो हो हो हो हो
आ आ आ आ आ हम्म हम्म हम्म
तुम परदेसी किधर से आए
आते ही मेरे मन में समाए
करूँ क्या हाथों से मन निकला जाए
करूँ क्या हाथों से मन निकला जाए
छोटे छोटे झरने हैं
के झरनों का पानी छूके
कुच्छ वादे करने हैं
झरने तो बहते हैं
क़सम लें पहाड़ों की
जो कायम रहते हैं
ओ ओ ओ ओ ओ(हम्म हम्म हम्म हम्म)
आहा