यूँ तो हसीनों के माहजबीनों के
होते हैं रोज़ नज़ारे
पर उन्हें देख के
देखा है जब तुम्हें
तुम लगे और भी प्यारे
बाँहों में ले लूँ ऐसी तमन्ना
एक नहीं कई बार हुई
रात कली एक ख़ाब में आई
और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे
आँख उन्हीं से चार हुई
रात कली एक ख़ाब में आई
और गले का हार हुई