रे नर मूरख जनम गँवायो, रे नर मूरख जनम गँवायो
कर अभिमान विषय सो राच्यो, नाम शरण तो कों नहीं आयो
रे नर मूरख जनम गँवायो, रे नर मूरख जनम गँवायो
ये संसार फूल सेमर कों, सुन्दर देखि तोही लुभायो
चाखन लाग्यौ रुई उड़ गई, हाथ कछू नाहिं आयो
रे नर मूरख जनम गँवायो, रे नर मूरख जनम गँवायो
कहा भयो अब के मन सोचें, पहिले काहे नाहिं कमायो
सूरदास हरि नाम भजन बिनु, सिर धुनि-धुनि रे पछितायो
रे नर मूरख जनम गँवायो, रे नर मूरख जनम गँवायो