उल्फ़त की राहों में ऐसे बढ़े क़दम
के चाह के भी ना रुके
ह्म, सहमी निगाहों ने छेड़ी वो दास्ताँ
होंठों से जो ना कह सके
पल भर का ये साथ है या रहेगा सदा
मेरे सवालात पर तूने हर दम कहा
संग चलेंगे यूँ ही, आसमाँ हो या हो ज़मीं
बिन तेरे कुछ भी नहीं ज़िंदगी
दो किनारे भी हैं हम, मगर हाँ, इस क़दर
साथ चलना कोई कम तो नहीं
धीमे से ख्वाहिशें दिल ये करे ज़रा
के तुझ को अपना कह सके
हो, चुप के से दास्ताँ दिल ये कहे ज़रा
के आसमाँ भी सुन सके
दो पल का एहसास है या रहेगा सदा
मेरे सवालात पर तूने हर दम कहा
संग चलेंगे यूँ ही, आसमाँ हो या हो ज़मीं
बिन तेरे कुछ भी नहीं ज़िंदगी
दो किनारे भी हैं हम, मगर, हाँ इस क़दर
साथ चलना कोई कम तो नहीं
चाहे तुम ना रहो, चाहे हम भी ना रहें
चाहेंगे बस तुम को हम तो यूँ ही
दो किनारे भी हैं हम, मगर हाँ, इस क़दर
साथ चलना कोई कम तो नहीं