मनमोहन मुखडा मोड़ गए
मनमोहन मुखडा मोड़ गए
और बसे विदेश में जाये मैं जनम जलि
बिरहँ बन कर रह गयी तड़प के हाय
मनमोहन मुखडा मोड़ गए
ओ प्रीतम मुझसे सही न जाये
तेरी सज्दे जुदाई
चमके ना चाँद
चमके ना चाँद
बंशी न बजे
प्राणो में तीर्थ समारी
आँखों में भरे जल की धरा
मन को और डुबाये
मनमोहन मुखड़ा मोड़ गए
एक रोज यहाँ गुंजेगी हसि
एक रोज यहाँ खुशबू भी हसी ई ई ई
और तू न तनहा
आज यहाँ
ओ प्रीत कहा
ओ प्रीत कहा
बिरहा की आग लगी तन में
जलती हूँ सदा मन ही मन में
बिरहा की आग लगी तन में
जलती हूँ सदा मन ही मन में
दिन रात रहती हू खड़ी नैना उस ओर लगाए
मनमोहन मुखडा मोड़ गए