[ Featuring Kavita Krishnamurthy ]
विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते है
जन जन के प्रिय राम लखन सिय (जन जन के प्रिय राम लखन सिय)
वन को जाते है (वन को जाते है) (हो ओ ओ)
ओ विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है
एक राजा के राज दुलारे वन-वन फिरते मारे-मारे
एक राजा के राज दुलारे (एक राजा के राज दुलारे)
वन-वन फिरते मारे-मारे (वन-वन फिरते मारे-मारे)
होनी हो कर रहे कर्म गति टरे नहीं काहू के टारे
सबके कष्ट मिटाने वाले कष्ट उठा ते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिय (जन जन के प्रिय राम लखन सिय)
वन को जाते है (वन को जाते है)
हो ओ ओ, विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है
उभय बीच सिया सोहती कैसे, ब्रह्म जीव बीच माया जैसे
फूलों से चरणों में काँटे विधिना क्यूँ दुःख दिने ऐसे
पग से बहे लहू की धारा हरी चरणों से गंगा जैसे
संकट सहज भाव से सहते और मुसकाते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिय (जन जन के प्रिय राम लखन सिय)
वन को जाते है (वन को जाते है)
हो ओ ओ, विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है
जन जन के प्रिय राम लखन सिय, वन को जाते है
जन जन के प्रिय (जन जन के प्रिय) (जन जन के प्रिय)
राम लखन सिय (राम लखन सिय) (राम लखन सिय)
वन को जाते है (वन को जाते है) (वन को जाते है)