चक्रवर्ती पद संपदा गौरव गाथा छोड़
सबका स्वामी चल दिया सबसे नाता तोड़
आत्म पंछी बिन तन पिंजरा कोई मोल न पावे हो ओ ओ
जिया बिन देह ज्योति बिन दिवरा, माटी ही कहलावे हो ओ ओ
जी मे देह का जर्जर पिंजरा पंछी को नहीं भावे हो ओ ओ
जिस पिंजरे को छोड़े उसमे लौटी बहुरि न आवे हो ओ
आत्म पंछी बिन तन पिंजरा कोई मोल न पावे हो ओ
आत्म पंछी बिन तन पिंजरा कोई मोल न पावे हो ओ ओ