यही वो रावण जिसके कारण, ईश मनुज तन धारा हो
विजय पाप पर धर्म की होती, जान गया जग सारा हो
अपनी शक्ति के मद में एक दिन, ईश्वर को ललकारा हो ओ ओ
अभिमानी का सर हुआ नीचा,अपने कर्मों द्वारा हो
यूँ तो हर प्राणी फल भोगे, निज करनी अनुसारा हो ओ ओ
पर करनी के करने में भी, पर कुछ हाथ हमारा हो
अंत समय एक बार हृदय से, जो श्रीराम पुकारा हो
राम विमुख ने राम सुमिर कर, निज परलोक सुधारा हो
यही वो रावण जिसके कारण, ईश मनुज तन धरा हो ओ ओ