कब आए कब जाए कहा ठहरे क्या खाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए
नाराज़ होता है उकता जाता है
कौन जाने किसकी बातो मे आता है
बस उठता है चला जाता है
कितना कोई रोके कितना समझाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए
कब आए कब जाए कहा ठहरे क्या खाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए
नाराज़ होता है उकता जाता है
कौन जाने किसकी बतो मे आता है
बस उठता है चला जाता है
कितना कोई रोके कितना समझाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए (मुसाफिर आए जाए)
आँह आ आ आ आ
एह ए ए ए
कभी उमर भर इंतेज़ार करवाए
कभी दरवाज़े पे खड़ा मुस्कुराए
गली गली सहर सहर टहलता रहता है
ना कुछ सुनता है ना कुछ कहता है
फिर भी बैठा है सब आस लगाए
क्या पता कब इसकी राह मे आ जाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए ए ए ए
ना रुपया ना पैसा जो कोई कमाए
ना शर्बत ना पानी जो कोई बहाए
ना धूप ना बत्ती जो कोई जलाए
ना रेखा ना कुंडली जो कोई पढ़ाए
ना मंदिर ना मस्जिद जो कोई बनाए
मन से ही निकले और मन मे ही समाए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए ए ए ए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए ए ए ए
है प्यार तो मुसाफिर मर्ज़ी से आए जाए