ए ज़ुल्फ़ ए परेशान ए हयात अब तो संवर जा
ए ज़ुल्फ़ ए परेशान ए हयात अब तो संवर जा
दिन ख़तम हुआ आ गयी रात अब तो संवर जा
घेरों की बनी जाती है बात अब तो संवर जा
दीवानो की हो जाए ना मात अब तो संवर जा
ए ज़ुल्फ़ ए परेशान ए हयात अब तो संवर जा
आईने से अब आँख मिलाई नही जाती
कट जाए पर गर्दन तो झुकाई नही जाती
जिस दर ने तुम्हें इज़्ज़त ओ तौक़ीर अता की
जिस दर ने तुम्हें खिलत ओ जागीर अता की
जिस दर ने तुम्हें एक नयी तक़दीर अता की
जिस दर ए तुम्हें अज़मत ओ तामीर अता की (आ आ आ आ)
अ अता की
क्या तुम यह दो रंगी जहाँ देख सकोगे
उस दर पे फिरंगी का निशान देख सकोगे