मुझसे पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग
मैंने समझा था के तू है तो दरख़्शां है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगों हो जाए
यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझसे पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग
अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेशम-ओ अट्लस-ओ कम-खाब में बुनवाए हुए
जा-बा-जा बिकते हुए कूचा-ओ बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लितड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए हमराज़ के तणुरोन से
दीप बहती हुई गलतें हुए न सुरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे
मुझसे पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग
ताना ताना ताराता आ राता तानानाना
ताना नाना ना रारा तारा ल ल ल ल ल ल
मुझसे पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग
हम्म हम्म